मटका मिटटी का बना होता है और इस कारण से उसमे बहुत सारे बारीक छिद्र होते हैं। इन छिद्रों से पानी रिसता रहता है और मटके की सतह पर आता रहता है।
ये पानी मटके के पानी की गर्मी को अवशोषित करके जल-वाष्प में बदल जाता है। ये जल-वाष्प फ़िर मटके से उड़ जाती है और अपने साथ ये ऊष्मा (गर्मी) भी लेकर चली जाती है। इस कारण से मटके का पानी ठंडा हो जाता है।

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